गणतंत्र दिवस संघर्ष और किसान आंदोलन विखण्डन के लिए जिम्मेदार कौन ?
गणतंत्र दिवस के दिन इस तरह का हिंसक विरोध प्रदर्शन वैसे तो किसी तरह से जायज नहीं ठहराये जा सकते हैं, लेकिन क्या यह एकतरफा है कि दो महीने से अधिक समय तक शांतिपूर्णं ढंग से चलने वाला किसान आंदोलन एकाएक हिंसक कैसे हो गया ? अब यह लगभग साफ हो गया है कि देश की राजधानी दिल्ली के सीमावर्ती इलाकों में देशभर के किसानों का दो महीने से भी अधिक समय से चला आ रहा किसान आंदोलन सरकार के दबाव के सामने झुकने, टूटने वाला नहीं है। सरकार ने पूरी कोशिश की यह प्रदर्शन एवं आंदोलन कैसे भी करके खत्म हो जाये, बिखर जाये। ग
टीकाकरण : वैश्विक भ्रष्टाचार और छल का इतिहास
आपको चौंकना नहीं चाहिए, अगर कोई यह कहे कि ‘कोविड-19’ नामक महामारी, जो भी थी, जैसी भी थी और जितनी भी थी, वह 2021 के आने के पूर्व ही ख़त्म हो चुकी थी! इसके ख़ात्मे की घोषणा में जानबूझ कर देरी की जा रही है! कई क़िस्म की दंडात्मात्क कार्रवाइयों के बावजूद दुनिया भर में पिछले साल का अंत आते-आते कोविड से बचाव के लिए न सिर्फ़ मास्क का प्रयोग बहुत कम हो गया था, बल्कि मास्क और तालाबंदी के ख़िलाफ़ जगह-जगह आंदोलन भी शुरू हो गये थे। काग़ज़ी आँकड़ों से ज़्यादा सच्चे आम लोगों के अनुभव होते हैं। आख़िर, महामार
इस गणतंत्र के लिये एक नयी उम्मीद बन कर आया है यह किसान आंदोलन
26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की किसान परेड (Republic Day Farmers Parade on 26 January) के आयोजन के बारे में किसानों के मसले पर निरंतर मुखर रहने वाले पत्रकार, पी साईंनाथ ने इस परेड को गणतंत्र को पुनः प्राप्त करने का एक आंदोलन बताया है। पी साईंनाथ के इस कथन पर विचार करने के पहले यह ज़रूर देख लेना चाहिए कि इस सरकार ने एक-एक कर के सभी संवैधानिक संस्थाओं को कमज़ोर किया है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी सरकार के इस संस्थातोड़क अभियान का एक अंग बन चुका है।
कोविड टीकाकरण अभियान में जातिवाद की दुर्गंध
कोविड-टीकाकरण के इस दौर में भी भारत की जाति-व्यवस्था ने एक बार फिर अपना घृणित चेहरा दिखाया है। कोविड-काल के शुरू में ही हम भारत का सांप्रदायिक चेहरा देख चुके हैं, जब एक तबक़े ने वायरस के प्रसार के लिए मुसलमानों को निशाना बनाया था। भारत में कोविड का पहला टीका अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में दिया गया। इसके लिए एम्स ने अपने सफ़ाई कर्मचारी मनीष कुमार को चुना। मनीष की जाति का कहीं उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन इस बात की लगभग शत-प्रतिशत दावे के साथ कही जा सकती है कि मनीष दलित या पिछड़े
Copyright @2020 The Sun Express