साहित्य पर सोशल मीडिया का प्रभाव
पिछले लगभग ढाई-तीन दशकों से टेलीविजन के बढ़ते प्रभाव के चलते साहित्य की दुनिया में पाठकों की कमी की बात विभिन्न मंचों और माध्यमों से निरंतर उठाई जाती रही है। अब सोशल मीडिया ने हमारी निजी और सार्वजनिक जिंदगी में जिस तरह अपनी पैठ बनाई है, छपे हुए साहित्य के भविष्य को लेकर तरह-तरह के सवाल खड़े कर दिये हैं। एक समय था जब हम घर में फुर्सत के समय में कोई किताब पढ़कर अपनी मानसिक खुराक पूरी करते थे। मुझे अच्छी तरह याद है कि बचपन में शाम के वक़्त खाना खाने के बाद पिता जी अक्सर मुझसे रामायण, सूर, कबीर के पद
निन्यानवे दशमलव नौ नौ का चक्कर
बाटा कम्पनी के जूतों के दाम बड़े ऊटपटांग होते थे। निन्यानवे रुपये पचानवे पैसे। अब कहाँ से लायें पचानवे पैसे खुल्ले। पता नहीं कौन मूर्ख उनकी इस तरह की ऊलजलूल कीमत तय करता था। इसलिए ज्यादातर देहाती आदमी उनके शोरूम में घुसने की हिम्मत नहीं कर पाता था। कम्पनी घाटे में चली गयी। अब नये मैनेजरों ने पुरानी नीति बदली है तो मामला कुछ संभला है ।
निन्यानवे दशमलव नौ नौ का चक्कर
बाटा कम्पनी के जूतों के दाम बड़े ऊटपटांग होते थे ।निन्यानवे रुपये पचानवे पैसे ।अब कहाँ से लायें पचानवे पैसे खुल्ले ।पता नहीं कौन मूर्ख उनकी इस तरह की ऊलजलूल कीमत तय करता था ।इसलिए ज्यादातर देहाती आदमी उनके शोरूम में घुसने की हिम्मत नहीं कर पाता था ।कम्पनी घाटे में चली गयी ।अब नये मैनेजरों ने पुरानी नीति बदली है तो मामला कुछ संभला है ।
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