निन्यानवे दशमलव नौ नौ का चक्कर
लेकिन कोरोना ने उस नीति को शीर्षासन करा दिया है। हर साबुन, सेनेटाइजर निन्यानवे दशमलव नौ नौ प्रतिशत वायरस को जड़मूल से उखाड़ने का दावा करके गामा पहलवान की तरह लंगोट घुमाकर बीच बाजार में उतर आया है। उन्हें मालूम है कि उनकी पहुँच से बचे दशमलव शून्य एक प्रतिशत में विश्व की आधी आबादी को उड़ा देने की कुब्बत है। लाइफबॉय और डिटॉल तो पुराने परिचित नाम थे लेकिन तमाम नयी नयी कम्पनियां मैदान में उतर आयीं जिनके नाम भी बड़े अजीबोगरीब थे। कई का नाम तो आजतक जुबान पर नहीं चढ़ पाया माल भले उनका सस्ता था। चीन का ऐसा खौफ था कि उनका हर माल सन्देह के घेरे में आ गया। राष्ट्रवादी सरकार के एक मामूली से इशारे पर उसके सैकड़ों ऐप ऐब की तरह देश से निकाल फेंके गये। पर अनपढ़ों के कुछ पल्ले नहीं पड़ा। वे धड़ल्ले से सस्ते चाइनीज मोबाइलों पर मजे से गानों और नीले फीते का मजा ले रहे हैं। कुछ मनचले तो अल्कोहल की जगह सेनेटाइजर ही गटक गये। शुरुआत में बड़ी लूट मची ।लोगों ने डर के मारे महँगे से महँगे मास्क और परफ्यूम की तरह सेनेटाइजर खरीदे। क्या पता सस्ता चीनी माल कब बीच में दम तोड़ जाये। अब टीके का व्यापारीकरण जोर पकड़ रहा है।कोरोना की तरह टीका सबको मुफ्त नहीं मिलेगा? गणित में पुराने ब्याज, मूलधन और मिश्रधन के जानकार हैरान परेशान हैं कि नये गणित में मुनाफे के लाखों प्रतिशत कुचक्रवृद्धि परसेंटेज का हिसाब कैसे लगायें? बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का मुनाफे का गणित उनके पल्ले नहीं पड़ता क्योंकि वे आज भी शत प्रतिशत उर्फ सेंट परसेंट से आगे नहीं बढ़ पाये। उनका निन्यानबे का फेर फेल हो गया। आईआईएम के मैनेजरों का परसेंटाइल उनकी यथास्थितिवादी कुंदबुद्धि में नहीं घुसता। इसी तरह विश्वबैंक और रिजर्व बैंक की कुचक्र बुद्धि के कमाल से उत्पन्न तकनीकी शब्दावली का रेपो रेट है जिसके रेम्प पर विश्व की अर्थव्यवस्था नाचती है। इसीलिए एक और एक ग्यारह की दौड़ में अमर्त्यसेन जैसे प्रतिक्रियावादी दो दूनी चार को विस्थापित होना पड़ता है। तेज धार में नौसिखिए वैसे भी उखड़ जाते हैं। प्रेमचंद के दौर के साहूकारों से ज्यादा क्रूर बैंकों के ऋण का कुचक्र है। साहूकार तो गरीब के जर, जोरू, जमीन छीनकर उसकी जान बख्श देता था लेकिन बैंक का कर्जा तो आत्महत्या किये बिना पीछा नहीं छोड़ता । तथाकथित आर्थिक सुधारों ने पूरी दुनिया को अपनी जद में खींच लिया है। इनका एकमात्र सिद्धांत है चित भी मेरी, पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का। दुनिया का प्रधान मालिक तमाम देशों के प्रधानसेवक रूपी हाथियों पर अंकुश डालकर पूरी आबादी को चंगुल में फांस लेता है ।फांसने की यह विधि छद्म लोकतंत्र में राष्ट्रवाद और धर्म की जुगलबंदी में रफ्तार पकड़ती है। कोरोना वर्चस्व का यही विश्वव्यापी मकड़जाल है जिससे बचना नामुमकिन है। भले ही चौकीदारी मुमकिन हो। इसी विधि से हर मामले में विश्व में, महाद्वीप में, देश में और मोहल्ले में ऊपर से नम्बर वन पोजीशन हासिल होती है। आप चाहें तो नीचे से नम्बर वन होने के लिये स्वतंत्र हैं। -मूलचन्द्र गौतम
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