राजश्री देशपांडे पिछले 5 सालों से महाराष्ट्र के गांवों की तकदीर बदलने में जुटी

उनकी रील लाइफ को जानने वाले कई फैंस को यह नहीं मालूम है कि राजश्री अपने एनजीओ नाभांगन के तहत किसानों, महिलाओं और ट्रांसजेंडर्स की मदद करने के लिए भी जी तोड़ मेहनत कर रही हैं। राजश्री किस तरह किसानों से जुड़ी, लॉकडाउन के दौरान उन्होंने कैसे जरूरतमंदों की मदद की और किस तरह गरीब बच्चों के लिए एक आदर्श स्कूल की स्थापना कर पाई। जानिए खुद उन्हीं की जुबानी- मैं औरंगाबाद के मराठवाड़ा की रहने वाली हूं। मेरा संबंध एक मध्यमवर्गीय परिवार से है। मुझे ट्रैवलिंग और रीडिंग का बचपन से शौक रहा है। लेकिन ट्रैवलिंग के लिए पर्याप्त पैसे न होने की वजह से मैंने मराठवाड़ा के आसपास के क्षेत्र को बस और ट्रेन में सफर करके देखा। इस सफर के दौरान मेरी कई गांव वालों से बात हुई और उनकी समस्याएं जानने का मौका भी मिला। मेरे पापा किसान थे। आज भी हमारे कई रिश्तेदार गांवों में रहते हैं और खेती करते हैं। इसलिए मैंने किसानों के जीवन को करीब से देखा है और उनकी समस्याओं को महसूस भी किया। यहीं से मुझे किसानों के लिए काम करने की प्रेरणा मिली। मैं पिछले पांच सालों से मराठवाड़ा के पास स्थित पांढरी और मठगढ़ गांव में किसानों की भलाई के लिए काम कर रही हूं। लॉकडाउन से पहले मैंने इन किसानों की फसल को टिडि्डयों से मुक्त कराने की योजना बनाई। अभी यहां के किसान टिडि्डयों से अपनी फसल को बचा ही रहे थे कि लॉकडाउन का दौर चला और गांवों में काम बंद होने के कारण बेरोजगारी बढ़ी। तब मेरे दिमाग में सबसे पहले परेशान हाल किसानों के लिए राशन जुटाने का ख्याल आया क्योंकि यहां के कई किसानों को दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं था। गांव में यह काम मैं अकेली नहीं कर सकती थी। इसलिए मैंने मराठवाड़ा के आसपास स्थित 30 गांवों से वालंटियर जुटाए और उनकी मदद से इन 30 गांव के लोगों तक राशन पहुंचाया। लॉकडाउन के लगभग 6 महीने तक मैंने अपनी टीम के साथ हर दिन लगभग 14 घंटे काम किया। इस काम के लिए राशि मैंने अपने एनजीओ के माध्यम से जमा की। इस दौरान जब मुझे पता चला कि औरंगाबाद में फ्रंटलाइन वर्कर के तौर पर काम कर रहे डॉक्टर्स के पास पीपीई किट नहीं है तो मैंने पीपीई किट मुहैया कराने के लिए बॉलीवुड स्टार शाहरूख खान से बात की। जल्दी ही शाहरूख खान के मीर फाउंडेशन की मदद से मैं औरंगाबाद के डॉक्टर्स को 2500 पीपीई किट उपलब्ध करा सकी। इसी दौर में जब मैंने औरंगाबाद के किसानों को काम की कमी से परेशान होते देखा तो वहां के गन्ना किसानों के बंद होते उद्योग को सेनिटाइजर की बढ़ती मांग देखते हुए सैनिटाइजर उद्योग में बदल दिया। यही वो समय था जब मेरा ध्यान औरंगाबाद के पिंपलगांव पंढेरी में जिला परिषद स्कूल की ओर गया। इस स्कूल को एक आदर्श स्कूल के रूप में तब्दील करने के लिए मैंने यहां न सिर्फ लायब्रेरी, किचन, स्टाफ रूम बल्कि ऐसा माहौल स्थापित करने का प्रयास किया जिससे बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सके। यहां बच्चों को न सिर्फ पढ़ाई बल्कि आर्ट, क्राफ्ट, संगीत और डांस जैसे कौशल सीखने का मौका मिलेगा। मैं जिस ग्लैमर की दुनिया में काम करती हूं, वहां से समाज सेवा का काम बिल्कुल अलग है। लेकिन ग्लैमर वर्ल्ड मेरा प्रोफेशन है जहां मैं अलग-अलग किरदारों को बखूबी निभाती हूं, वहीं समाज की सेवा का काम इंसानियत से जुड़ा हुआ है जो मेरे दिल के करीब है। मैं अपनी इस कोशिश को हमेशा जारी रखूंगी। इसकी तुलना मैं अपने प्रोफेशन से नहीं कर सकती। आखिर में मैं महिलाओं से यही करना चाहूंगी कि आपमें इतनी ताकत है जिसके बल पर आप सारी दुनिया को बदलने का दम रखती हैं। यकीनन आपमें योग्यता की कमी नहीं है। इसे सबके सामने लाएं और कामयाबी की बुलंदी को छू लें।


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