गेब्रियल गर्सिया मार्खेज

उनकी विश्व प्रसिद्ध रचनाओं में क्रानिकल्स आफ ए डैथ फोरटोल्ड, लव इन दी टाइम आफ कोलरा तथा आटम आफ दी पैट्रिआर्क शामिल हैं, जिन्होंने बाइबिल को छोड़कर स्पैनिश भाषा की किसी रचना की बिक्री के सभी रिकार्ड तोड़ दिए थे। 1967 में लिखी गयी उनकी महान रचना वन हंड्रेड ईयर्स आफ सोलिट्यूड की 25 से अधिक भाषाओं में पांच करोड़ से अधिक प्रतियां बिकी थीं। इस पुस्तक के बारे में न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा था, बुक ऑफ जेनेसिस के बाद ये साहित्य की पहली कृति है जिसे पूरी मानव नस्ल को पढ़ना चाहिए। उनकी कहानियों में ऐसा तिलिस्मी ताना बाना होता था कि उन्होंने मार्केज़ को लोक कथाओं की तरह हर घर का हिस्सा बना दिया। उनकी कहानियों में सूअर की पूंछ के साथ पैदा हुआ बच्चा और पीली तितलियों के झुंंड से घिरे नायक आदि की अनोखी बातें होती थीं। मृत्यु के बरक्स जीवन एक क्रिया की तरह है। जितना जीवन मार्केज़ के वाक्यों में हैं, जितनी ऑक्सीजन आत्मा के लिए, जितनी शिद्दत, जुम्बिश, बदमाशियां एक क्रिया की तरह हमें, हमारे पढ़ने और पढ़ाने के ज़रिए हमारे होने को घटित करती है और मुमकिन भी। चाहे वह मृत्यु के बारे हो या प्रेम की या फिर जंग और तानाशाहों की। वे हमारे बुनियादी सरोकारों को ज़मीन बनाकर आसमान नापते हैं उसे इतनी अति तक ले जाते हुए जहाँ सच या वास्तविकता भले ही धुँध में घुलने लगती है, पर सत्य या ट्रुथ अपने असल अवतार में सामने आता है। जो हर पाठक का अपना है और शायद अलग भी। हर अच्छे कथ्य की तरह मार्केज़ के वाक्य आपको पलट कर पढ़ते हैं, आपकी अपनी सहजता, आपके अपने निरस्त्र मनुष्य में। एक क्रिया में साँस लेता हुआ, आगे बढ़ता हुआ। उन भाषाओं में भी जो मार्केज़ की नहीं थी अपने हस्ताक्षर कथ्य के साथ। कितने ही हिदुस्तानियों के लिए पाब्लो नेरूदा प्यार की कविताओं में देश और दुनिया के बाक़ी कवियों के मुक़ाबले ज़्यादा सगे, अपने और दिल के क़रीब लगते हैं। लेटिन अमेरिका से हमारी ज़िंदगी में आया दूसरा सबसे महत्वपूर्ण नाम गैब्रिरियल गार्सिया मार्केज़ का है। हर मृत्यु में हम अपना थोड़ा -सा हिस्सा कम होते देखते हैं कुछ दिनों के लिए। पर गैब्रियल गार्सिया मार्केज़ उर्फ़ गैबो एक ऐसा नाम है, जिसके लिए ये सारे विशेषण छोटे पड़ते रहेंगे। उन क्रियाशील वाक्यों के मुक़ाबले जो उन्हें लिख गये, उनके बाद भी पढ़ें जाने के लिए। उनकी अपनी ज़िंदगी है और अपना सफ़र. आप अगली बार जब मार्केज़ का लिखा कुछ पढ़ेंगे तो क्या वे अपनी रंग-छवि-अर्थ छोड़कर आपके भीतर कुलबुलाना या साँस लेना बंद कर देंगे? जाने माने उपन्यासकार विलियम फ़ॉकनर से प्रभावित मार्केज़ ने अपना पहला उपन्यास 23 वर्ष की उम्र में लिखा था। ये उपन्यास साल 1955 में प्रकाशित हुआ। लीफ़ स्टार्म नाम का ये उपन्यास और इसके बाद के दो उपन्यास उनके क़रीबी दोस्तों में काफ़ी पसंद किये गये। हालांकि तब किसी ने सोचा नहीं था कि आने वाले समय में मार्केज़ इतने बड़े लेखक हो जायेंंगे। साल 1965 में उन्हें वन हन्ड्रेड ईयर्स ऑफ़ सॉलीट्यूड के पहले अध्याय का ख़्याल उस समय आया जब वो अकापुलो की तरफ कार से जा रहे थे। उन्होंने कार रोकी, वापस घर आये और अपने कमरे में ख़ुद को बंद कर लिया। लिखने के दौरान उनके दोस्त होते थे- छह पैकेट सिगरेट । 18 महीने के बाद वे जब किताब पूरी कर उठे तो उन पर 12 हज़ार डॉलर का कर्ज़ था। लेकिन मज़े की बात ये थी कि उनके हाथ में 13०० पन्नों का वो उपन्यास था जो अपने समय का सबसे बेहतरीन उपन्यास कहलाने वाला था। यह उपन्यास जब स्पेनी भाषा में प्रकाशित हुआ तो एक हफ़्ते में ही इसकी सारी प्रतियां बिक गयीं और अगले तीस वर्षों में इस उपन्यास की दो करोड़ से अधिक प्रतियां बिकीं और तीस से अधिक भाषाओं में उसका अनुवाद हुआ। बहुत साल बाद, जब वे फ़ायरिग स्क्वॉड के सामने खड़े थे, कर्नल ऑरेलिनो बुएंदिया को वह दोपहर याद आ रही थी, जब उनके पिता उन्हें बर्फ़ दिखलाने ले गए थे। वन हंड्रेड इयर्स ऑफ़ सॉलिट्यूड का ये पहला वाक्य है। एक वाक्य में सौ साल हैं, बारूद की आने वाली गंध है, जो मिट्टी और मृत्यु में मिलने वाली है और जन्म के कुछ सालों बाद का वह एक बच्चे का बर्फ़ को लेकर कौतुक, दोपहर में ठंड को महसूसने का रोमांच और पिता की उंगली पकड़ने का आश्वस्तिबोध है। एक कालपात्र में सब कुछ समेटे हुए। एक पल में सौ साल समेटने की क्रिया। ढाई करोड़ प्रतियाँ बिकने वाला यह उपन्यास इसके आगे शुरू होता है। इस गतिशील क्रिया में। फैलता-सिकुड़ता-समेटता। देश और काल को, स्मृति और कल्पना को, तथ्य और उसकी उड़ान को। मार्केज़ के साथ वे वाक्य नहीं गये हैं। वे यहीं हैं। हमें उलट और पलट कर पढ़ते रहने के लिए। लेखक के चले जाने के बाद भी। अवसान के समय सबसे पहले विशेषण हत्थे चढ़ते हैं। जैसे मार्केज़ के मरने पर नोबेल पुरस्कार, जादुई यथार्थवाद, उनकी बहुतेरी में से एक किताब वन हंड्रेड इयर्स ऑफ़ सॉलिट्यूड, कोलम्बिया, कैंसर, स्मृतिलोप... विशेषणों की फ़ेहरिस्त बढ़ती जाती है। मार्केज़ की तारीफ़ उनके लेखन की जीवंतता को लेकर होती है। उनकी भाषा कल्पनाओं को नयी उड़ान देती है। कुछ लोग मानते हैं कि वो अपने लेखन में जानबूझकर कल्पनाओं का, सुपरनैचुरल चीज़ों का और मिथकीय तरीक़ों का उपयोग करते हैं ताकि अपने देश में चल रही उथल-पुथल से दूर हो सकें। मार्केज़ ख़ुद कहते थे कि उनका सरियलिज़्म लातिन अमरीका के यथार्थ से आया है। कोलंबिया में बढ़ती हिसा को देखते हुए मार्केज़ की राजनीतिक प्रतिबद्धताएं भी बढ़ीं और इसके बाद रचना हुई द जनरल इन हिज़ लैबरिथ और ऑटम ऑफ़ द पैट्रियार्क की। कोलंबिया सरकार के लिए शîमदगी पैदा करने वाले एक लेख के बाद मार्केज़ को कुछ समय निर्वासन में यूरोप में भी बिताना पड़ा। मार्केज़ ने जब चिली के शरणार्थियों की वापसी के अनुभवों पर एक उपन्यास लिखा तो चिली सरकार ने उसकी पंद्रह हज़ार प्रतियां जला दीं। मार्केज़ लगातार अपने अतियथार्थवादी रुझान वाला लेखन प्रकाशित कराते रहे। आगे चलकर वे फ्रांस्वा मितरां के दोस्त बने। उनके मित्रों में फ़िदेल कास्त्रो भी थे। राजनीतिक विवादों के बाद भी मार्केज़ का स्थान साहित्य के बड़े नामों में शुमार होता है और उसकी वजह है, उनका बहुचर्चित लेखन। ऐसा ही उनका एक और उपन्यास आया 1986 में लव इन द टाइम ऑफ कॉलरा। नज़रिये और भाषा के इस जादूगर को 1982 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। नोबेल कमिटी के अनुसार -मार्केज़ को मिथकों और इतिहास को मिलाकर एक ऐसी दुनिया गढ़ने के लिए नोबेल दिया गया जिस दुनिया में कुछ भी संभव होता है और सब कुछ विश्वास करने लायक है। और इन सभी चीज़ों को वैसी ही रंगीनियत मिलती है जैसा कि दक्षिण अमरीका के रंग-बिरंगे कार्निवल होते हैं. व्यक्तित्व में भी कुछ इस तरह की रंगीनी देख सकते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से मार्थाज विनयार्ड्स में एक लम्बी साहित्यिक मुलाक़ात के दौरान आधी रात के बाद मार्केज़ जब यह कहते हैं , अगर फिदेल और तुम आमने-सामने बैठकर बात कर सको, तो सारी दिक़्क़तें ही दूर हो जाएंगी। उन्होंने बिल क्लिंटन से अपने इस लेख में मोनिका लेविस्की वाले मामले में सहानुभूति भी जताई। इसके पहले क्लिंटन ने अपने चुनाव अभियान में मार्केज़ का मुरीद होने की बात कही। हम देखते हैं कि यहां पर मार्केज़ एक सदाशय लेखकीय व्यक्तित्व तो हैं पर एक परिपक्व राजनीतिक समझ से लैस नहीं हैं वरना क्या वह यह कहते कि फिदेल और क्लिंटन के आमने सामने बैठकर बात करने से सारी दिक्कतें दूर हो जायेंगी! यहां मार्केज़ मैजिक रियलिस्म से सराबोर दिखते हैं न कि एक प्रतिबद्ध वामपंथी विश्लेषक। मार्केज़ को उनके नाना-नानी ने उत्तरी कोलंबिया के बड़े ही ख़स्ताहाल शहर आर्काटका में पाला पोसा था। मार्केज़ अपनी कृतियों की प्रेरणा के लिए अपने बचपन के पालन पोषण को श्रेय देते हैं। मार्केज़ को अपने नाना से राजनीतिक चेतना मिली जो ख़ुद दो गृह युद्धों में शामिल हो चुके थे और अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले कार्यकर्ता भी थे। अपनी नानी से मार्केज़ ने अंधविश्वासों और स्थानीय कहानियों को जाना-समझा। नानी उन्हें मरे हुए पूर्वजों, भूतों और प्रेतात्माओं की कहानियां सुनाती थीं जो उनकी नज़र में घर में ही नाचते रहते थे। मार्केज़ ने अपनी नानी के कहानी कहने के अंदाज़ को ही अपने उपन्यासों में इस्तेमाल किया। मार्केज़ ने कॉलेज में क़ानून की पढ़ाई शुरू की पर पढ़ाई बीच में ही छोड़कर उन्होंने पत्रकारिता शुरू कर दी। साल 1954 में वे एक अख़बार के काम के सिलसिले में रोम गये और उसके बाद से अधिकतर समय वे विदेश में ही रहे। पेरिस, वेनेजुएला और मेक्सिको में उनके जीवन का अधिकांश समय बीता। उन्होंने पत्रकार के रूप में अपना काम कभी नहीं छोड़ा, यहां तक कि जब उनकी कहानियां बहुत लोकप्रिय हो गईं और उन्हें काफ़ी पैसे भी मिलने लगे तब भी वो पत्रकारिता से जुड़े रहे। पत्रकारिता और साहित्य के बीच के रिश्ते के बारे में वह बताते हैं कि साहित्य के लिए ज़मीनी सच से जुड़े रहना ज़रूरी है, जो पत्रकारिता मुमकिन करवाती है। लेटिन अमेरिकी पत्रकारिता में वे पुरानी घटनाओं को पुनर्संयोजित कर बहुत ही प्रभावी तरीक़े से पेश करने वाले सबसे माहिर लोगों में जाने जाते थे। लेटिन अमेरिका में इसे रेफ्रितो (फिर से छौंकी हुई) स्टाइल की पत्रकारिता कहते हैं। जहाज़ दुर्घटना में बच गये नाविक की ऋंखलाबद्ध कहानी न सिर्फ़ इसकी एक बड़ी मिसाल है, बल्कि बाद में किताब द स्टोरी ऑफ़ ए शिपरैक्ड सेलर भी बनकर आयी। वेलकोस नाम का ये नाविक दस दिन तक समुद्र में डूबता-उतराता रहा था, जिसका मार्केज़ ने लगातार पाँच दिन छह-छह घंटे इंटरव्यू किया और उसी के शब्दों में आपबीती की तरह रिपोर्ट लिखी। वे ये भी कहते हैं कि जहाँ एक ग़लत तथ्य पत्रकारिता की विश्वसनीयता दाँव पर लगा देता है, वहीं एक अकेला सच साहित्य को खड़े होने की ज़मीन देता है। मार्केज़ के मुताबिक़ अगर आप लोगों से ये कहें कि हाथी आसमान में उड़ रहे थे, तो कोई आप पर भरोसा नहीं करेगा। पर अगर आप ये कहें कि आसमान में चार सौ पच्चीस हाथी उड़ रहे हैं, तो लोग शायद आपकी बात मान लें। यह मिसाल देने वाले न तो लेखक आसानी से मिलेंगे और न ही पत्रकार। पर मार्केज़ गप मारने से ज़्यादा ज़ोर उस विस्तार पर दे रहे हैं, जो उनके रिपोर्ताज में भी दिखता है। न्यूज़ ऑफ़ ए किडनैपिग एक अपहरण की घटना के ज़रिए एक देश, समय, राजनीति, सत्ता, ड्रग लॉर्ड पाब्लो एस्कोबार पर लिखी गई किताब है, उस सच के जो दिहाड़ी पत्रकारिता के टुकड़ा-टुकड़ा सच में अक्सर ठीक से दर्ज नहीं होता। लव इन द टाइम ऑफ कोलेरा उनकी दूसरी सबसे लोकप्रिय किताब है। शायद प्यार पर लिखा गया दुनिया का सबसे सुंदर उपन्यास भी। मार्केज़ के वाक्य अगर भारत और लेटिन अमेरिका से दूर दुनिया की दूसरी जगहों पर अपना जादू दिखलाते रहते हैं, तो यही उनका हासिल है। उनके लिखे वाक्य अपनी ज़मीन और अपने वक़्त से बाहर जाकर किसी और समय किसी और जगह के लोगों को पढ़ सकते हैं, लिख सकते हैं और बहुत बार बदल भी सकते हैं। अपने नोबेल पुरस्कार समारोह के भाषण की शुरूआत वे एंतोनियो पिगाफ़ेटा नाम के नाविक की किताब का ज़िक्र से करते हैं। पिगाफ़ेटा दुनिया का समुद्र के रास्ते चक्कर लगाने वाले मैगेलन का सहयोगी था। जब वे दक्षिण अमेरिकी हिस्सों में आये तो जो सबसे पहला इंसान दिखलाई दिया, उसके सामने इन यूरोपीय नाविकों ने आईना कर दिया। पिगाफ़ेटा के मुताबिक़ वह इंसान अपनी की शक्ल देखने से आतंकित हो अपने होश खो बैठा। मार्केज़ का लिखा भी एक आईना है, जिसमें दुनिया ख़ुद को देखती है। अपनी असामान्यताओं के साथ, क्रूरताओं के साथ, किम्वंदतियों के साथ और आश्चर्य के साथ। एक इंटरव्यू में वे कहते हैं कि लोग भले ही उनके काम को जादुई यथार्थवाद के नाम पर फंतासियों की तरह देखते हैं, पर उन्होंने एक भी वाक्य ऐसा नहीं लिखा, जिसमें उनकी अपनी हक़ीकत का अंश न हो। कहीं बारिश महीनों से रुकने का नाम नहीं ले रही, कहीं गाँव का गाँव अपनी याददाश्त खो चुका है, कहीं अनिद्रा का शिकार। इन असामान्य और छोटे सचों का विस्तार अपनी पेचीदगियाँ लेकर आता है, जो दूसरी असामान्यताओं को उधेड़ता है। मार्केज़ के लिखे ये छोटे-छोटे सच संसार के पार जाकर हमसे पहचान बढ़ाते हैं, हमें मुस्कुराने और चकित होने और मायूस होने पर मजबूर करते हैं। उनका कहना था कि वे किसी साहित्य और आलोचक और अनजाने लोगों को ध्यान में रखकर नहीं लिखते। वे सिर्फ़ इसलिए लिखते हैं कि उनके दोस्त उनसे और ज़्यादा मुहब्बत करें। इसीलिए उनका जो लिखा है वह दिल पर किसी बोझ की तरह है, जो एक इंसान दूसरे से साझा कर हल्का हो जाना चाहता है। मनुष्य होने की तमाम कमज़ोरियों के साथ बेझिझक अंदाज से क़िस्सागोई की सहजता से शब्दचित्र बनाते हुए। मार्केज़ के मरने से उनके लिखे का जादू और अतियथार्थ दोनों न कम होंगे और न गायब। वे क्रियाशील रहेंगे। लिखे जाने की क्रिया के बाद। पढ़े जाने की क्रिया में। और उन वाक्यों को पढ़ना हर किसी का व्यक्तिगत होगा। मार्केज़ का लिखा वैसी ही कोई क्रिया है उन विशेषणों से बाहर और उनके आरपार। आज दुनिया जिन शब्दों की बैसाखी लेकर उनके जाने का स्यापा करने और गड्डमड्ड श्रद्धांजलि देने की कोशिश कर रही है। उसकी शायद मार्केज़ के व्यक्तित्व को देखते हुए बहुत जरूरत नहीं है। गर है तो उनकी ही कोई किताब फिर से उठा कर पढ़ने की ज़रूरत है। ये वाक्य कैसे लिखा गया, क्या सोचा होगा उन वाक्यों की गतिशील क्रिया का हिस्सा बनते हुए आदि। यही उन्हें एक सृजनात्मक श्रद्धांजलि होगी। मार्केज़ कोई देवदूत नहीं थे। हां एक बात और उन्हीं के शब्दों में यदि कहें कि सच के लिए लोग सरकारों से ज़्यादा यक़ीन, लेखकों पर करते हैं। लेकिन क्या यह तीसरी दुनिया के देशों का सच है या विकसित पश्चिमी दुनिया का? यहां मार्केज़ थोड़ा गडबडाते हैं। बहरहाल मार्केज़ एक महत्वपूर्ण लेखक के बतौर सदैव याद किये जाते रहेंगे।


Follow Us
About Us | Contact Us | Advertise with Us | Terms of Use | Feedback | Cookie Policy | Privacy policy

Copyright @2020 The Sun Express

Designed & Developed By AY Goaltech Infotech Private Limited