सुभाष चंद्र बोस और आज का भारत, योजना आयोग नेताजी की परिकल्पना थी

योजना आयोग नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की परिकल्पना थी-- नेताजी ने कांग्रेस के सामने लक्ष्य रखा देश के नवनिर्माण का, इस दिशा में आजादी के बाद अनेक ठोस कदम उठाए गए उनमें से सबसे बड़ा कदम था योजना आयोग का गठन। नेताजी का मानना था योजना आयोग के बिना देश का नवनिर्माण संभव नहीं है। संयोग की बात है मोदी जी आए तो उन्होंने सबसे पहला काम किया योजना आयोग को भंग किया। जिस दिन योजना आयोग खत्म हुआ उसी दिन तय हो गया कि देश को पीछे ले जाने की कोशिशें शुरू हो गयी हैं। देश के नवनिर्माण के लिए विज्ञान के विकास पर बल देना दूसरी बड़ी प्राथमिकता थी, मोदी सरकार के आने के बाद धर्म और अध्यात्म को प्राथमिकता दी जा रही है। ऐसे में सुभाष चन्द्र बोस के सपनों की जड़ों में मौजूदा सरकार मट्ठा डाल रही है। सुभाष चन्द्र बोस का मानना था – हम कुर्बानी का गलत अर्थ लगाते रहे हैं, ऐसा मानते रहे हैं कुर्बानी का मतलब पीड़ा और दर्द है, लेकिन वास्तव में कुर्बानी में कोई दर्द नहीं होता, मनुष्य दर्द की अनुभूति में कुर्बानी कभी नहीं दे सकता। सुभाष चंद्र बोस के अतिरिक्त हमारे देश के इतिहास में ऐसा कोई व्यक्तित्व नहीं हुआ जो एक साथ महान सेनापति, वीर सैनिक, राजनीति का अद्भुत खिलाड़ी और अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुरुषों, नेताओं के समकक्ष साधिकार बैठकर कूटनीतिज्ञ तथा चर्चा करने वाला हो। भारत की स्वतंत्रता के लिए सुभाष चंद्र बोस ने पूरे यूरोप में अलख जगाया। सुभाष चंद्र बोस प्रकृति से साधु, ईश्वर भक्त तथा तन एवं मन से देशभक्त थे। महात्मा गाँधी के नमक सत्याग्रह को ‘नेपोलियन की पेरिस यात्रा’ की संज्ञा देने वाले सुभाष चंद्र बोस का एक ऐसा व्यक्तित्व था, जिसका मार्ग कभी भी स्वार्थों ने नहीं रोका, जिसके पाँव लक्ष्य से पीछे नहीं हटे, जिसने जो भी स्वप्न देखे, उन्हें साधा और जिसमें सच्चाई के सामने खड़े होने की अद्भुत क्षमता थी। एक शहर में हैजे का प्रकोप हो गया था। यह रोग इस हद तक अपने पैर पसार चुका था कि दवाएँ और चिकित्सक कम पड़ गए। चारों ओर मृत्यु का तांडव हो रहा था। शहर के कुछ कर्मठ एवं सेवाभावी युवकों ने ऐसी विकट स्थिति में एक दल का गठन किया। यह दल शहर की निर्धन बस्तियों में जाकर रोगियों की सेवा करने लगा। ये लोग एक बार उस हैजाग्रस्त बस्ती में गए, जहाँ का एक कुख्यात बदमाश हैदर ख़ाँ उनका घोर विरोधी था। हैदर ख़ाँ का परिवार भी हैजे के प्रकोप से नहीं बच सका। सेवाभावी पुरुषों की टोली उसके टूटे-फूटे मकान में भी पहुँची और बीमार लोगों की सेवा में लग गई। उन युवकों ने हैदर ख़ाँ के अस्वस्थ मकान की सफाई की, रोगियों को दवा दी और उनकी हर प्रकार से सेवा की। हैदर ख़ाँ के सभी परिजन धीरे-धीरे भले-चंगे हो गए। हैदर ख़ाँ को अपनी ग़लती का एहसास हुआ। उन युवकों से हाथ जोड़कर क्षमा माँगते हुए हैदर ख़ाँ ने कहा मैं बहुत बड़ा पापी हूँ। मैंने आप लोगों का बहुत विरोध किया, किंतु आपने मेरे परिवार को जीवनदान दिया। सेवादल के मुखिया ने उसे अत्यंत स्नेह से समझाया आप इतना क्यों दुखी हो रहे हैं? आपका घर गंदा था, इस कारण रोग घर में आ गया और आपको इतनी परेशानी उठानी पड़ी। हमने तो बस घर की गंदगी ही साफ की है। तब हैदर ख़ाँ बोला केवल घर ही नहीं अपितु मेरा मन भी गंदा था, आपकी सेवा ने दोनों का मैल साफ कर दिया है। सुभाषचंद्र बोस इस सेवादल के ऊर्जावान नेता थे, जिन्होंने सेवा की नई इबारत लिखकर समाज को यह महान संदेश दिया कि मानव जीवन तभी सार्थक होता है, जब वह दूसरों के कल्याण हेतु काम आए। वही मनुष्य सही मायनों में कसौटी पर खरा उतरता है। देश के नवनिर्माण के लिए विज्ञान के विकास पर बल देना दूसरी बड़ी प्राथमिकता थी। मोदी सरकार के आने के बाद धर्म और अध्यात्म को प्राथमिकता दी जा रही है। ऐसे में सुभाष चन्द्र बोस के सपनों की जड़ों में मौजूदा सरकार मट्ठा डाल रही है। सुभाष चन्द्र बोस का मानना था – हम कुर्बानी का गलत अर्थ लगाते रहे हैं, ऐसा मानते रहे हैं कुर्बानी का मतलब पीड़ा और दर्द है, लेकिन वास्तव में कुर्बानी में कोई दर्द नहीं होता, मनुष्य दर्द की अनुभूति में कुर्बानी कभी नहीं दे सकता।


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