ममता की आंधी में भाजपा शिविर ध्वस्त
कैलास विजय वर्गीय, जेपी नड्डा,अमित शाह और खुद नरेंद्र मोदी तक अपने तमाम आवश्यक राजनैतिक कार्यों को छोड़ कर ममता बनर्जी को शिकस्त देने के लिए खूंटा गाड़कर बंगाल में बैठे रहे। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि चुनाव आयोग द्वारा आठ चरणों में बंगाल में चुनाव कराया जाना भी भाजपा की कुत्सित राजनीति का ही एक हिस्सा रहा। मोदी की विभिन्न सभाओं और जुलूसों में हजारों लाखों की बेतरतीब भीड़ के चलते कोरोना वायरस का राज्य में भयानक फैलाव हुआ जिसके कारण आज हालात बेकाबू हो रहे। जाहिर है कि राज्य राजनीति से ममता बनर्जी को उखाड़ फेंकने के लिए इतना कुछ करने के बावजूद भी नरेंद्र मोदी का जादू नहीं चला और ममता ने 213 सीटों पर अपने अभूतपूर्व विजय का परचम फहराते हुए यह साबित कर दिया कि आम-अवाम के बीच उनका आकर्षण अब भी कम नहीं हुआ है। इस बार के चुनाव में धन की अतृप्त लोभ लिप्सा तथा अपने राजनैतिक मनसूबे को ले जिन सूरमाओं ने भगवा शिविर की ओर अपने क़दम बढ़ाये थे, उनमें से अधिकांश नेताओं को कचरा समझ कर बंगाल की चेतनशील जनता ने कूड़ेदान के हवाले कर दिया। लेकिन इतनी बड़ी जीत की खुशी में ममता बनर्जी को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि राज्य राजनीति में जो खालीपन आया है,यह विजय बेशक उसी का परिणाम है। दरअसल राज्य राजनीति के परिप्रेक्ष्य में भाजपा की हिंसक व नस्लीय विचारधारा के खिलाफ़ जो मत पड़े, उसी ने तृणमूल के विजय को सुनिश्चित किया। इसीलिए भी ममता को खूब संभल कर अपने कदम बढ़ाने होंगे और उन्हें भी अपने पक्ष में लाने का सतत प्रयास करते रहना होगा जिन्होंने तृणमूल कांग्रेस की राजनीति से असहमत होते हुए भी भाजपा की सांप्रदायिक विचारधारा के खिलाफ़ तृणमूल कांग्रेस के पक्ष अपने मत दिये हैं। साथ तृंका के भीतर जो कचरा अर्से से भरा हुआ है, उसकी विधिवत सफाई भी अत्यंत जरूरी है। दलिए हिंसक राजनीति से बंगाल को बचाने को ले भी ममता बनर्जी को प्रयास करते रहना होगा कारण कि राज्य एवं केंद्र भाजपा आने वाले दिनों में तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी की चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने का भरपूर प्रयास करेगी। कारण कि उसके लिए अपनी इतनी बड़ी पराजय को पचा पाना संभव नहीं है। ज़ाहिर है राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने का कोई भी अवसर केंद्र सरकार अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहेगी। इसलिए भी ममता बनर्जी को खूब संभलकर अपने कदम बढ़ाने होंगे। सत्ता का अपना एक रसूक होता है, सुख व आकर्षण होता है, उसके कारण भी राजनीति के भ्रष्ट व सुविधाभोगी तत्व तृकां की ओर अनायास ही आकृष्ट होंगे, उनसे भी पार्टी व संगठन को बचाने की एक बड़ी चुन्नौती ममता बनर्जी के समक्ष आयेगी। संगठन में पहले से ही असंख्य चोर-चोटे व लंपट-लुच्चे भरे पड़े हैं। उनमें से चुनाव के पहले ही कइयों ने अपना पल्ला बदल दिया था और इसलिए तृकां में ही बने रहे कारण कि परिस्थयों के मद्देनजर उन्हें भाजपा से अपेक्षित लाभ न मिला। जहां बंगाल विघान सभा चुनाव में भाजपा के पास नरेंद्र मोदी का चेहरा था वहीं तृकां के पास सिर्फ़ ममता बनर्जी का चेहरा रहा। बहरहाल भाजपा की सांप्रदायिक व नस्लीय राजनीति को देखते हुए राज्य के लघु संप्रदाय एवं धर्म निरपेक्ष अवाम ने कई मामलों में ममता से असहमत होते हुए राज्य राजनीति के हित में तृकां का समर्थन कर भाजपा की हार को सुनिश्चत किया। अब यह देखना है कि ममता अपने पक्ष में मिले भारी जनादेश को संभालने में कामयाब होती हैं या नहीं।
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