राष्ट्र के लिए घातक है हिंदूराष्ट्र की अवधारणा

हमने माना कि हमारे पास वह सब कुछ है, जिससे हम देश के दुश्मनों से लड़ सकते हैं। हालांकि किसी भी जंग में हार और जीत संसाधनों और काफ़ी हद तक परिस्थितियों पर निर्भर करता है। मगर हमारी चिंता तो इस बात को लेकर है कि देश के भीतर जो देश के असली दुश्मन हैं आज वही खुद सबसे बड़े राष्ट्रभक्त होने का दम्भ भर रहे और हर वक़्त बेवक़्त अपनी राष्ट्रभक्ति का दावा पेश कर रहे। खुद को देश और संविधान से ऊपर समझ रहे। सिर्फ़ इतना ही नहीं वे देश के संविधान और इतिहास को मूलत: बदलने को ले सर्वाधिक तत्पर दिख रहे। वे चाहते हैं कि यह देश विशुद्ध हिंदू राष्ष्ट्र बने और उनके हिसाब से इसका इतिहास,भूगोल व संविधान लिखा जाये। सिर्फ़ इतना ही नहीं,बल्कि शिक्षा की बुनियाद को भी विज्ञान आधारित नहीं, विश्वास आधारित बनाना चाहते हैं और अपनी आस्था की बुनियाद पर राष्ट्रभक्ति का पैमाना सुनिश्चित करना अपना फ़र्ज़ समझते हैं। इनके मुताबिक अवाम का जो तबका इनके मज़हबी जुनून में शामिल नहीं है वह राष्ट्रभक्त नहीं हो सकता। उसे पाकिस्तान अथवा और कहीं चला जाना चाहिए। भारत की एकता-अखंडता नहीं, बल्कि इन्हें हिंदू राष्ट्र चाहिए। भारतीयता नहीं,बल्कि इन्हें सिर्फ़ हिंदुस्तान चाहिए। एक ऐसा हिंदुस्तान जहां सिर्फ़ एक नस्ल के लोग रहते हों और एक भाषा बोली जाती हो। आधुनिक व विकसित भारत नहीं, बल्कि दुनिया के सामने झोली फैलाता बदहाल फटेहाल हिंदू राष्ट्र! देश के भीतर जो देश के दुश्मन हैं वे संगठित हैं। सक्रिय हैं। सर्वाधिक मुखर हैं। राष्ट्र की एकता-अखंडता के खिलाफ़ वे तनकर खड़े हैं। धर्म, संप्रदाय व नस्ल के नाम पर वह देश को बांटना चाहते हैं। तोड़ना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि पूरा राष्ट्र एक ही रंग में रंग जाये। आदमी की पहचान इंसानियत से नहीं, बल्कि रंगों से हो। मानवीय गुणों की वजह से नहीं बल्कि आदमी धर्म व संप्रदाय से जाना जाये। ऐसी सोच निस्संदेह फासीवादी नजरिये का द्योतक है जो हमारी संपन्न विरासत व अतीत के श्रम-संघर्षों से अर्जित जनवादी मूल्यों को सिर्फ़ ख़ारिज ही नहीं करती, उस पर निरंतर बर्बर हमले कर रही है। नस्लीय संकीर्णता के बढ़ते इस ख़तरे से, अप्राकृतिक हमले से आप बताएं हम कैसे लड़ेंगे..? क्या, एटम की ताक़त और हमारे जाँबाज सिपाही देश को टूटने से बचा सकते हैं? नहीं। देश की जनता को, प्रबुद्ध लोगों को इसके लिए आगे आना होगा। और इसके लिए यह ज़रूरी है कि हम सांप्रदायिक शक्तियों के मंसूबे को समझें और इसके भावी भयानक ख़तरे से अवाम को सावधान करें। दरअसल विविधता के भीतर जो एकता है वही इस राष्ट्र की असली ताक़त है और पहचान भी। सांप्रदायिक घृणा का विस्तार हमारी सांस्कृतिक विरासत को कमजोर बना रहा है। अखंड भारत के उज्ज्वल भविष्य की संभावनाएं इससे कमजोर पड़ रही हैं। देश के भीतर देश के दुश्मनों की यह चाल एटम के विनाशकारी हमले से भी भयंकर है। घातक है। रंगों पर हमले! प्रतीकों पर हमले!! मां के गर्भ में पल रहे देश के भविष्य पर हमले!!!... अगर देश को टूटने व तबाही के मंजर से बचाना है तो हमें इस बर्बर हमले के खिलाफ़ संगठित होना होगा, मुखर होना होगा। यह वक़्त की एक बड़ी चुनौती है। हर हाल में हमें इसका सामना करना होगा। देश के संविधान तथा राष्ट्रसत्ता को भी अपनी भूमिका साफ़ करनी होगी। हमारा संविधान तो अपनी निजता में अपनी जगह क़ायम है लेकिन इस हक़ीक़त से हम कतई इंकार नहीं कर सकते कि राष्ट्रसत्ता निरंतर देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान की निजता तथा संघीय ढांचे की बची-खुची गरिमा व ताक़त को शातिराना तरीक़े से ध्वस्त करने की दिशा में तेज़ी से अग्रसर है। संभव है कि निकट भविष्य में हमारी अदालतें कठपुतली बन कर रह जायें। हम नहीं चाहते कि राष्ट्र की संप्रभुता खंडित हो तथा यह टुकड़ों में बंट जाय और इस पर फासिस्ट शक्तियों का निरंकुश राज हो। दरअसल हम देश को तबाही के दौर से गुजरने देना नहीं चाहते हैं, इसलिए वक़्त रहते बुनियादी सवालों को हम उठा रहे। तालिबान की तर्ज़ पर नये हिंदुस्तान की अवधारणा की हम पुरजोर मुख़लिफ़त करते हैं। मानवीय मूल्यों पर हो रहे निरंकुश हमले की हम निंदा करते हैं। शिक्षा-संस्कृति की बुनियाद को नेस्तनाबूद करने की संगीन साजिश का खुलासा राष्ट्रहित में बेहद ज़रूरी है। इस दुनिया में मुसोलिनी व हिटलर अब नहीं रहे। मगर मानव-रक्त-पिपासु उनके असंख्य कुनबे अब भी इस धरती पर मौजूद हैं। उनकी दरिंदगी के क़िस्से लोग अभी तक भुले नहीं हैं। आप जानते हैं, बेरहम हिटलर ने पुरी दुनिया को एक ही रंग में रंगना चाहा था। इसके लिए उसने नस्लीय श्रेष्ठता पर ख़ास जोर दिया। उग्र राष्ट्रवाद का वह एक बड़ा प्रवर्तक था। उसकी राष्ट्रभक्ति को संभवत: जनता ने समझने में चूक की जिसका ख़मियाज़ा पूरी मानवता को, सभ्यता को मानव-संस्कृति को भुगतना पड़ा। ज़ाहिर है दुनिया उसे अब भी भुगत रही...। जो लोग भी हिटलर के खिलाफ़ गये अथवा उसके रंग में रंगने से इंकार किया, वे हिटलर की बर्बरता की भेंट चढ़ गये। असंख्य निर्दोष लोगों की हत्याएं उसकी दरिंदगी को बख़ूबी दर्शाती हैं। यहूदी युवतियों की जांघों तथा उरोजों पर लोहे की गर्म सलाख़ों से दागे गये निशान- हिटलर सैनिक दस्तों की वेश्याएं -आज भी मानवता को बेआबरू तथा विश्व इतिहास को कलंकित कर रहे हैं...। हालांकि हिटलर ने अपने जीवन काल में जो कुछ भी किया, उस पर उसे गर्व था। चूंकि वह खुद को जर्मनी की श्रेष्ठ संतान समझता था, इसलिए वह पूरी दुनियापर अपना प्रभुत्व जताना चाहता था। वह अपना वर्चस्व कायम करना चाहता था और इसकी शुरुआत उसने पहले अपने ही देश से की। फासीवादी दर्शन इंसान व इंसानियत के खिलाफ़ जाता है। वह सर्वप्रथम परंपरा के सकारत्मक मूल्यों को धूलिसात् करता है। वह इतिहास व विज्ञान को अपने विश्वासों के अनुकूल गढ़ता है। उसे विकृत बनाता है। वह शिक्षा को विज्ञान की मज़बूत बुनियाद पर खड़ा नहीं करता बल्कि धर्म की कमजोर बुनियाद पर, अंध-आवेग पर उसे टिकाये रखना चाहता है। और इसके लिए नये-नये मुहावरे गढ़ता है। हिटलर ने भी यही किया। फ़िर भी वह जर्मनी को नहीं बचा सका। पिछले दिनों हमने हिटलर के गोस्टापों की दरिंदगी गुजरात में देखी...। हिटलर की जालिम करतूतों पर गर्व करने वालों तथा उसे अपना आदर्श मानने वालों की पहचान आज ज़रूरी है। पूरी दुनिया को ही धधकती आग में झोंकने वाला बेरहम हिटलर पुन: जीवित हो उठा है। पिछले दिनों आपने भी नरेन्द्र मोदी के गुजरात में देखा कि किस तरह एक गर्भवती महिला के पेट को तलवार से चीर कर कथित रामभक्तों ने अपनी बर्बरता का पिरचय दिया! शैतानों ने जीवित युवती की भ्रूण से बच्चे को निकाला और धधकती हुई आग में झोंक दिया! दरअसल वह इंसानियत का नृशंस क़त्ल था न कि किसी मुस्लिम का! रंगों व प्रतीकों के आधार पर उन्होंने असंख्य असहाय-निर्दोष लोगों की निर्ममतापूर्वक हत्याएं कीं। पेट्रोल डालकर घरों-मकानों व दुकानों में आग लगायी। लूट-पाट की। अनगिनत महिलाओं से बलात्कार किये। हिटलर की पशुता व बर्बरता से संपूर्ण गुजरात त्राहिमाम्-त्राहिमाम् करता रहा और गुजरात का मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी तानाशाही पर हिटलर की तरह गर्व करता रहा...। मोदी की गौरव यात्रा, तदुपरांत विजय यात्रा...! यह किस बात के लिए? जिसकी की जगह जेल में होनी चाहिए वह गुजरात में गौरव यात्रा निकालता है और अफ़सोस कि सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर बैठा दूसरा अपराधी उसे संरक्षण देता है। तब देश का संविधान सचमुच कितना-असहाय व बौना नज़र आता है...! जब देश में ऐसे हालात उत्पन्न हों तो हम सोचने पर विवश हो जाते हैं। हर हाल में इस देश को टूटने से बचाना होगा। जम्हूरियतपसंद अवाम को अपनी धर्मनिरपेक्ष भूमिका तय करनी होगी। इंसान से बड़ा कोई धर्म अथवा मज़हब नहीं हो सकता। इंसान और इंसानियत के खिलाफ़ जो खड़ा है वह देश के संविधान व राष्ट्र का सबसे बड़ा शत्रु है। आज देश में अनेक समस्याएं हैं- महंगाई, भुखमरी व बेरोजगारी तो हैं ही। साथ ही युवकों की मानसिक विक्षिप्तता और किसानों में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृति। जीवन के सभी क्षेत्रों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की दखलंदाजी, विदेशी प्रचार माध्यमों के बढ़ते हस्तक्षेप, देश तोड़ने की साम्राज्यवादी साजिश, आतंकवाद, अलगाववाद, नस्लीय विभेद, धार्मिक उन्माद, मानव-मूल्यों पर बढ़ता-गहराता संकट, टूटता-बिखरता घर-परिवार और अमरीकी साम्राज्यवाद के समक्ष घुटने टेकती हमारी केंद्रीय राजग सरकार! एक साथ इतनी समस्याएं और उससे जूझता हुआ आम आदमी किस ओर जाय? धार्मिक उन्माद व सांप्रदायिक फसाद इन समस्याओं का कतई समाधान नहीं हो सकता। हालांकि बर्बर सत्ता व फासिस्ट ताक़तों के लिए ये संजीवनी ज़रूर हैं। ज्ञान-विज्ञान व इतिहास की रोशनी में हमें सच्चाई को समझना होगा। वैचारिक तौर पर एक संगठित राष्ट्र ही देश के दुश्मनों से लड़ सकता है। हिंदूराष्ट्र की अवधारणा राष्ट्र की एकता के लिए घातक है। यह फासिस्ट शक्तियों की सोची-समझी साजिश है। आप प्रतिवेशी राष्ट्र पाकिस्तान को देश कर बखूबी यह समझ सकते हैं, वह गरीबी-भुखमरी से अपने लोगों को निजात नहीं दिला सकता मगर आतंकवाद का सबसे बड़ा प्रयोजक है। क्या हम भी वहीं पहुंचना चाहते हैं, आज़ जहां पाकिस्तान खड़ा है! बेशक हमारा जवाब होगा नहीं। देश का शासक जो चाहता है ज़ाहिर है भारत की जनता वह नहीं चाहती है। आतंकवाद जम्हूरियत का सबसे बड़ा शत्रु है। आज जम्हूरियत को दफ़नाकर खुद अपनी ही कब्र खोदने में लगा हुआ है पाकिस्तान। दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी राष्ट्र अमरीका सिर्फ़ दक्षिण एशिया में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता है। आज पाकिस्तान बुरी तरह उसके शिकंजे में है। लेकिन देश के राजनैतिक हालात साफ़तौर पर संकेत दे रहे हैं कि कल मोदी हिन्दुस्तान अमेरिका के गिरफ्त में होगा। फिलहाल भारत-पाकिस्तान की बंदर बांट की लड़ाई में वह सब कुछ हड़पने को ले तत्पर है। ग़ौरतलब है सोवियत संघ अपने विघटन के बाद अब वह हस्तक्षेप करने की स्थिति में नहीं रहा। चीन खुद को संभालने और आर्थिक तौर पर मज़बूत बनाने में व्यस्त है। दूसरी ओर सीमा पर आतंकवाद से जूझता विकट परिस्थितियों के सम्मुखीन है भारत। देशभक्त, प्रगतिशील जनवादी शक्तियों की एकजुटता ही फासिज्म व साम्राज्यवाद के आक्रमण से हमें बचा सकती है। हम परंपरा के सकारात्मक मूल्यों की बुनियाद पर ही अपना रास्ता तय करेंगे। बहुविध भाषाओं व संस्कृतियों का यह विशाल देश अटल-आडवाणी तथा मोदी के मुताबिक नहीं चल सकता। हमें भारत को हिंदू राष्ट्र नहीं बनाना है। हिंदू-मुसलमान, सिख-ईसाई एवं जो अन्य अकलियतें हैं, सभी इस राष्ट्र के सम्मानित नागरिक हैं। इस राष्ट्र के गठन एवं समासिक संस्कृति के निर्माण में उनकी भूमिका को हम नज़रअंदाज नहीं कर सकते। वे सभी अपनी निजता को समेटे हुए संपूर्ण देश में अपनी सुगंध का विस्तार कर सकें,देश में ऐसा वातावरण होना चाहिए। मगर धार्मिक उन्माद अथवा इस्लामिक कट्रटरता व कठमुल्लापन की कतई उन्हें छूट नहीं दी जा सकती। देश के संविधान की मूल भावना भी यही है। हम भारत को एक संप्रभुतासंपन्न, समतामूलक, सर्वधर्म की आत्मा से ओत-प्रोत प्रजातांत्रिक गणराज्य के रूप में देखना चाहते हैं, जहां सबको सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक न्याय मिल सके और साथ ही विचार-अभिव्यक्ति व आस्था की स्वतंत्रता हो। 15.०3.2००2


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