कोराना-कहर के दौरान ईश्वर की भूमिका कहीं भी नज़र नहीं आ रही

इस परिवार के अन्य वायरस हैं, 1.एचसीओवी-229 ई, जो मानव कोरोना के नाम से जाना जाता है और चमगादड़ों से मनुष्य में फैलता है। 2. एचसीओवी-एनएल-63, इसकी भी शुरुआत खांसी-सर्दी आदि लक्षणों के साथ ही होती है। 3. एचसीओवी-ओसी-43, यह कोरोना परिवार का तीसरा वायरस है। 4. सार्स सीओवि-2००2, इसी परिवार का एक ख़्ातरनाक वायरस है लेकिन अच्छी बात यह है कि 2००4 के बाद से इसके संक्रमण कोई प्रमाणिक तथ्य उपलब्ध नहीं है। 5.एचसीओवि-एचकेयू-1, इस वायरस के संक्रमण का पहला मामला जनवरी-2००5 में दुनिया के संज्ञान में आया। इसका वायरस चूहे से आदमी में फैलता है। 6. मर्स अर्थात् मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कोरोना वायरस। मनुष्यों में संक्रमण करने वाला यह एक वायरस है। यह पहली बार सउदी अरब में पाया गया। इसमें भी बुखार, निमोनिया और किडनी संबंधित लक्षण पैदा होते हैं। ज़ाहिर है इसी परिवार का सबसे नया वायरस कोविड-19 है। निस्संदेह इसके वैश्विक महामारी के संक्रमण की रफ्तार काफ़ी तेज़ है। जबकि इसका मृत्यु दर स्पेनीश फ्लू, इबोला और इंफ्लूएंजा से काफ़ी कम है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक सिर्फ़ कैंसर से प्रति साल विश्व में 96 लाख लोगों की मृत्यु होती है। दरअसल कोविड-19 के बारे में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के पास अधिक तथ्य उपलब्ध नहीं हैं, इस वज़ह से भी चिकित्सकों एवं स्वास्थ्यकर्मियों बेहद में घबराहट है तथा लोग भयाक्रांत हैं। देश में स्वास्थ्य संबंधित उपकरणों की भारी किल्लत है। केंद्र सरकार ग़ैरजरूरी चीज़ों पर तो खूब खर्च करती है लेकिन राष्ट्र के लिए जो कार्य अत्यंत ज़रूरी हैं,वे प्राथमिकताओं में वे शामिल नहीं हैं। पीपीई किट, स्तरीय मास्क,वेंटिलेटर्स,कोरोना टेस्टिंग किट, आक्सीजन सिलेंडर आदि की कमी जगजाहिर है। इनकी कमी के कारण मरीजों,चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों के समक्ष जीवन-मृत्यु के सवाल खड़े हो गये हैं। हमारे देश की स्थिति यह है कि जिन्हें कोरेंटाइन में भेजा जा रहा है, उन्हें न तो समय पर भोजन और पानी मिल रहे हैं न ही चिकित्सक उनकी खबर ले रहे। भाग्य भरोसे उन्हें छोड़ दिया जा रहा है। विकट परिस्थितियों के सम्मुख दुनिया के वैज्ञानिक एवं चिकित्सक इस वायरस का प्रतिरोधक अर्थात् टीका विकसित करने की जी-जान से कोशिश कर रहे हैं और हम इसके सकारात्मक परिणाम को लेकर पूरी तरह आशान्वित हैं। हम यह समझते हैं कि कोविड-19 एक नया रोग है और थोड़े समय उपरांत विश्व के पास इसका कारगर प्रतिरोधक अवश्य होगा। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि हम अपने समक्ष खड़ी एक चुन्नौती का सामना किस प्रकार कर रहे हैं! और दूसरा यह कि हम इसे लेकर किस हद तक सचेष्ट हैं! यह एक विचारणीय विषय है। कई बार तो तंत्र-तंज़ीम की मूर्खताओं के कारण भी एक सामान्य -सी समस्या भयावह रूप धारण कर लेती है जिसका कुफल सिर्फ़ थोड़े लोगों को ही नहीं, बल्कि समाज-सभ्यता को भी भुगतना पड़ता है। हम इस बात को कतई नजरअंदाज नहीं कर सकते कि आज़ देश में कोविड-19 के वैश्विक संक्रमण की वज़ह से लोगों को जितने कष्ट सहने व जान-माल के नुकसान उठाने नहीं पड़ रहे हैं, कहीं उससे अधिक नुकसान और कष्ट व्यवस्थाजन्य अव्यवस्था व बुराइयों के कारण हो रहे हैं। दिल्ली समेत कई नगरों तथा महानगरों में हजारों-लाखों कामगारों व विद्याथियों की भीड़, सैकड़ों-हजारों मील की पैदल दूरी तय करते भूख-प्यास से बिलबिलाते लोगों का अनियंत्रित हुजूम, राह चलते युवक, युवती, वृद्ध, एवं बच्चों की दर्दनाक मौतें! रोजी-रोजगार के साधन अचानक ठप्प हो जाने पर जीवन को हथेलियों पर लिये अपने गांव-नगर न पहुंच पाने की विवशता! बंदी जीवन की असह्य पीड़ा, जिन सब के कारण लोग आत्महत्या तक करने पर आज़ मजबूर हो रहे! नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया के इन वीभत्स दृश्यों को हम कतई नजरअंदाज नहीं कर सकते। सच कहा जाय तो कि लंपट पूंजी की बुनियाद पर खड़ी सत्ता-सियासत तथा तंत्र-तंज़ीम भले अपने विकास के जितने भी दावे क्यों न कर ले लेकिन जो उसकी असलियत है, वह आज़ दुनिया के समक्ष स्वत: उजागर होती जा रही है! अमेरिका,इटली, स्पेन और फ्रांस आदि उन्नत राष्ट्र एक मामूली -सा वायरस के आगे आज़ सचमुच कितना लाचार नज़र आ रहे हैं! और मोदी का हिन्दुस्तान जो आज़ साम्राज्यवादी अमेरिका के आगे पूरी तरह नतमस्क है,अपनी मूर्खताओं की फसल काटने को ले अभिश्प्त है! दरअसल कोविड-19 इनके लिए आतंक का एक पर्याय बन चुका, लेकिन भारतीय अवाम जो आज़ इतना अधिक परेशान-हैरान व भयाक्रांत है, उसकी वज़ह क्या सिर्फ़ कोरोना है, या और कुछ ? तंत्र-तंज़ीम की अव्यवस्था एवं अराजकता को अगर हम थोड़े समय के लिए नजरअंदाज भी कर दें तब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अज्ञानता व अदूरदर्शिता को ज़रा भी कम करके हम नहीं देख सकते हैं! शुतुरमुर्ग की तरह अपनी आंखों बंद कर कथित भाग्य भरोसे हम पड़े हुए हैं, गौर से बाहर की दुनिया को देखने व समझने की जो बेचैनी व जिज्ञासा हमारे भीतर होनी चाहिए, वह हममें नहीं है। समय-संघर्ष से हासिल अनुभव-ज्ञान को नहीं, न ही आधुनिक चिकित्सा विज्ञान को, बल्कि परंपरा की मूर्खताओं को हम अधिक मूल्यवान समझने की गुस्ताखी करते हुए बेहद खुश हैं। साथ ही अपनी मूर्खताओं को राष्ट्रजीवन पर बलात् थोपने का ख़्ाास आग्रह भी! यह अकारण नहीं है। ऐसे भी दुनिया में अकारण व अचानक कभी कुछ नहीं घटता है, प्रत्येक घटना के पीछे उसका कारण मौजूद रहता है। जिस वायरस को लेकर हम आज़ इतना आतंकित हैं,यह भी कोई अचानक पैदा नहीं हुआ, न ही किसी गॉड, अल्लाह अथवा ईश्वर ने धरती पर मनुष्यों अथवा किसी विशेष धर्म-संप्रदाय के लोगों को उनके किये का दण्ड भुगतने के लिए इसे भेज दिया है। ज़ाहिर है दुनिया में सैकड़ों प्रजाति के वायरस हैं, जिनकी उत्पत्ति प्राकृतिक भी हो सकती है और अप्राकृतिक भी। विषाणुओं का इतिहास काफ़ी पुराना है। भौतिक कारणों से ये पैदा होते रहते हैं और समय-समय पर अपनी क्षमताओं को ये परिमार्जित तथा विकसित भी करते हैं, साथ ही अपने रंग-रूप में परिवर्तन ही। इन्हें हम प्राकृतिक-अप्राकृति दो भागों में बांट सकते हैं। लेकिन इन्हें हम ईश्वरीय बिल्कुल नहीं कह सकते। यह बात दीगर है कि कोविड-19 नाम का यह वायरस अपनी नयी शक़्ल में कतिपय नये-पुरानेे लक्षणों के साथ एक ख़तरे के तौर पर आज़ ज़रूर उस दुनिया के समक्ष उपस्थित है जिस दुनिया में आप और हम अर्से से रहते आ रहे हैं। बेशक यह एक नया वायरस है लेकिन लाइलाज नहीं है। आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान इतना असमर्थ नहीं है जो इस वायरस पर वह काबू न पा सके। लेकिन उस ईश्वर के पास इसका कोई उपचार नहीं है जिसके सामने विश्व आबदी का एक बड़ा हिस्सा वक़्त बेवक़्त अपने हर कष्ट निवारण के लिए नतमस्तक होते रहता है। हर प्राकृतिक-अप्राकृतिक आपदा-विपदा के दौरान लोगों का एक काल्पनिक शक्ति के आगे नतमस्तक होते रहना भी अकारण नहीं है, इसके भी कारण हैं। और सिर्फ़ भारत ही नहीं, कमोवेश पूरी दुनिया की स्थिति एक जैसी है। शातिर दिमाग अपने स्वार्थ में लोगों को भेड़-बकरी बनाये रखना चाहता है और लोग भी हैं जो भेड़-बकरी बन जाने के लिए तैयार हैं। अपनी विद्या-बुद्धि व सदियों की समस्त ज्ञान-चेतना को ख़्ाारिज करते हुए लोग पशुओं की तरह आचरण करने लगते हैं। कोरोना-काल में ऐसे चौकाने वाले अनगिनत वाक़ये हमारे सामने हैं! बहरहाल कोरोना को हम दुनिया के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानते हैं। यह इसलिए कि इसनेे आस्था के विभिन्न केंद्रों की नींव पर बख़ूबी चोट की है। गिरिजाघरों, म​स्जिदों मंदिरों में जहां लोग अपने शोक-संताप और कष्ट निवारण के लिए जाया करते थे, उनके कपाट बंद हो चुके हैं! और जिन्होंने कोरोना को ईश्वरीय मान कर अपनी आस्था को प्राथमिकता दी और चिकित्सा-विज्ञान की हिदायतों की अनदेखी करते हुए गिरिजाघरों में प्रार्थनाएं कीं, मस्ज़िदों में नमाज़ अदा कीं तथा मंदिरों में पूजा-अर्चना कर अपने भगवान की आरती उतारी, शोभा यात्रा निकालीं अर्थात् भेड़-भीड़ का हिस्सा बने रहना कबूल किया, सच कहा जाय तो उन्हीं मूर्खों ने इस खतरनाक विषाणु के संक्रमण को देश-दुनिया में सबसे ज़्यादा फैलाने का अपराध किया। बेशक ऐसे भेड़-बकरियों की तादाद सिर्फ़ भारत में ही अधिक नहीं है, बल्कि दुनिया के अधितर देशों में ऐसे जीव भरे पड़े हैं। इन्हीं जीवों में एक जीव भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हैं। जब पूरी दुनिया इस वायरस के संक्रमण तथा इसके घातक परिणामों से अवगत हो चुकी थी और खुद अमेरिका में तबाही कादौर आरंभ हो चुका था, तब मोदी ने 24-25 फरवरी 2०2० को डोनाल्ड ट्रंप के स्वागत में गुजरात के अहमदाबाद में नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया जिसमें भारतीय भेड़ों की वीभत्स भीड़ तो रही ही, विदेशी मेहमानों की संख्या भी हजारों में थी। इनके अतिरिक्त ट्रंप के हजारों सुरक्षा गार्ड भी उस भीड़ का हिस्सा बने। डोनाल्ड की सुरक्षा में बड़ी संख्या में अमेरिकी सुरक्षा कर्मी तो थे ही, इनके अतिरिक्त लगभग 3 दर्जन आपीएस अधिकारी, 65 सहायक पुलिस आयुक्त,2०० पुलिस निरीक्षक,8०० पुलिस उप-निरीक्षक,1०,००० से अधिक पुलिसकर्मी,अतिरिक्त स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रूप के अतिरिक्त एसएनजी कमांडों का एंटी-·िपर यूनिट्स भी शामिल रहे। ज्ञातव्य है कि सिर्फ़ अहमदाबाद में ट्रंप के तीन घंटे के सुरक्षा घ्ोरे पर भारत सरकार के 1०० करोड़ रुपये खर्च हुए। परिणामत: आज़ देश में सबसे अधिक कोविड-19 के शिकार अहमदाबाद के लोग ही हैं। प्रारंभ में अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर पर भारत सरकार का रोक न लगाना भी मोदी की भेड़ बुद्धि को ही दर्शता है। कोविड-19 हवाई सफ़र कर भारत में आया और इसके लिए हम केंद्र सरकार को पूरी तरह से जिम्मेवार मानते हैं। यह भी अकारण नहीं है। सच तो यह है कि कोरोना-आतंक का इस्तेमाल। नरेंद्र मोदी और अमित शाह महाभारत के शातिर शकुनि के तौर अपने राजनैतिक विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए कर रहे हैं और देश का ध्यान अन्यत्र भटकाने के लिए ही वे अपने पासे फेंक रहे हैं। कोविड-19 संक्रमित मरीज़ों की चिकित्सा के दौरान आवश्यक स्वास्थ्य रक्षक सामग्रियों की कमी एवं लापरवाही के कारण जहां एक ओर कतिपय चिकित्सकों एवं स्वास्थ्यकर्मियों के संक्रमित होने के दुखद वाक़ये हमारे सामने हैं, उसके विपरीत अपने ही मरीजों के प्रति चिकित्सकों एवं स्वास्थ्यकर्मियों के उपेक्षाभाव के अनेक अमानवीय मामले भी। ज़ाहिर -सी बात है अपने पेश्ोगत मर्यादा के प्रति जब हम ईमानदार नहीं होते हैं, तब ऐसे वाक़ये सामने आते हैं। शासन-प्रशासन की अदूरदर्शिता एवं अकर्मण्यता निश्चित तौर पर ऐसी घटनाओं को बढ़ाते हैं। हमारी चिंता इस बात को लेकर नहीं है कि कोविड-19 देश के अधिकतर राज्यों को अपने गिरफ्त में ले चुका है और लोगों के मरने के सिलसिला जारी है। न ही यह हमारी खुशी की वज़ह हो सकती है कि इसके संक्रमण की तीव्रता चीन, इटली, अमेरिका, स्पेन तथा फ्रांस आदि विकसित मुल्क़ों की अपेक्षा भारत में काफ़ी कम कम है। संभव है कि इसके लिए देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी पीठ थपथपायें और भक्तगण खूब आह्लादित होकर नंगा नाचने लगें! दरअसल हम इस बात को लेकर बेेहद परेशान हैं कि इस वैश्विक महामारी से राष्ट्रसत्ता किस तरह लड़ रही है और अपनी जनता के प्रति वह अपनी जिम्मेदारियों का कितनी ईमानदारी एवं तत्परता से निर्वहन कर रही! राष्ट्रहित में इस पर विचार-मंथन एवं चिंतन को हम अत्यंत जरूरी समझते हैं। हमारा मानना है कि राष्ट्रसत्ता की मूर्खताओं के कारण कोविड-19 का संक्रमण यहां भी भयावह आकार धारण कर सकता है। जिस तरह नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की तर्ज़ पर बिना किसी पूर्व तैयारी आनन-फानन में19 मार्च, 2०2० को रात 9.०० बजे देश के नाम अपने संबोधन में 22 मार्च रविवार सुबह 7.०० बजे से रात 9.०० बजे तक जनता काफ्र्यू की घोषणा कर दी और लगे हाथ 23 मार्च को 21 दिन के लिए लॉक डाउन का तुगलक़ी फरमान,परिणामत: करोड़ों लोग जो अपने जीवकोपार्जन के लिए घर-परिवार से बाहर गये हुए थ्ो,फंस गये। अपने राज्य से बाहर गये शिक्षार्थी और अन्य लोग भी मोदी की मूर्खता का शिकार बने। पूरे देश में अफरातफरी का माहौल बन गया। सबसे चौंकाने वाली बात तो यह रही कि मोदी के आदेश पर मूर्खों ने अपने घरों में खूब ताली और थाली बजायी! कुछ ने तो खूब पटाके फोड़े। अति उत्साह में रात के अंधरे में हज़ारों की वीभत्स भीड़ सड़कों पर ताली और थाली बजाते हुए उमड़ पड़ी। मानो देश आनंद-उत्सव मना रहा हो। एक संक्रामक रोग से लड़ने का यह लोगों का अंदाज़ रहा, बेशक अभिनव अंदाज़! बौद्धिक शून्य पंडितों और अंधभक्तों ने मोदी की मूर्खता में भी परम विज्ञान का अविष्कार कर दुनिया को अचरज में डाल दिया। अगर भविष्य में हमारे समक्ष कोविड-19 से भी कोई बड़ा संकट आकर खड़ा हो जाय तो राज्यसत्ता किस प्रकार उसका सामना करेगी? यह एक अहम सवाल है जिसे हम कतई नजरअंदाज नहीं कर सकते! निस्संदेह रोग के शुरुआती दौर में चीन को भी ख़ासी परेशानी हुई थी। वायरस के बारे में तथ्यपरक जानकारी जुटाने तथा संक्रमण पर नियंत्रण पाने में चीन को लगभग दो-तीन सप्ताह गुज़र गये। हालांकि एक चीनी चिकित्सक ली वेन लियांग जिनकी मृत्यु भी कोरोना के कारण ही हुई थी, उन्होंने अपने मित्रों से इस वायरस के ख़तरनाक होने की बात कही थी और सर्तक रहने का सुझाव भी दिया था। पुलिस ने ली वेन लियांग की हिदायतों को गंभीरता से न लेकर उन्हें ही अफ़वाहबाज साबित करने पर जुटी रही। लेकिन बहुत जल्द जनवरी 2०2० के प्रथम सप्ताह में ही चीनी चिकित्सकों और वैज्ञानिकों ने यह ज्ञात कर लिया कि यह एक नयी प्रजाति का ख़तरनाक वायरस है जिसका उन्होंने नाम दिया कोविड-19 । शुरुआती दौर में जो कोरोना वायरस था, वह नॉवेल वायरस हुआ और फिर नॉवेल वायरस से कोविड-19 । इसके बाद तो चीनी चिकित्सकों ने ज़रा भी देर किये बग़ैर कोविड-19 के खिलाफ युद्ध स्तर पर अपनी मुहिम तेज़ कर दी जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे। हालांकि तब तक लाखों लोग कोविड-19 की चपेट में आ चुके थ्ो और हजारों अपनी जान गवां चुके थ्ो। लगभग 1.25 करोड़ आबादी वाले वुहान शहर की नाकेबंदी के साथ ही लोगों की शारीरिक दूरी बनाये रखने को ले प्रशासन शख़्त हो गया। साथ ही आधुनिक चिकित्सा विज्ञान पर उसने भरोसा किया। कोविड-19 के खिलाफ़ अपने अनुसंधान को जारी रखते हुए चीन ने बिल्कुल सुनियोजित तरीके से इसके संक्रमण पर काबू पाने की दिशा में अपना प्रयास जारी रखा। एक बड़े संकट के सम्मुख होते हुए भी उसने किसी टोटके का सहारा नहीं लिया, न ही किसी अन्य देश के आगे मदद के लिए हाथ अपने फैलाये। बल्कि अपने संसाधनों के सहारे एक बड़ी जंग फतह करने की दिशा में उसने अपनी पहल जारी रखी। जबकि अमेरिका और उसके पिछलग्गू देशों ने कोविड-19 के संक्रमण को चीनी वायरस के तौर पर पूरी दुनिया में सिर्फ प्रचारित ही नहीं किया, बल्कि तथ्यों को छुपाने का उस पर कई गंभीर आरोप भी लगाये। साम्राज्यवादी अमेरिका ने तो चीन को परिणाम भुगतने की धमकी तक दे डाली। हम इस बात से इंकार नहीं करते हैं कि प्रारम्भिक दौर में चीन ने कोई गलती नहीं की लेकिन वह आज़ उसने जिस तत्परता से कोविड-19 को मात दे रहा है उसे भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। सच कहा जाय तो चीन ही वह देश है जिसने सर्वप्रथम कोविड-19 के घातक लक्षणों से विश्व विरादरी को अवगत कराया। 24 जनवरी 2०2० को चीन के चिकित्सकों और वैज्ञानिकों ने नॉवेल कोरोना (कोविड-19) से होने वाले नये रोग और उसके लक्षणों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कर पूरी दुनिया को सावधान किया था। रिचर्ड होर्टन के संपादन में लंडन, न्यूयार्क और बीजिंग से निकलने वाली विश्व की सबसे पुरानी एवं प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका लांसेट मेडिकल जर्नल के माध्यम से चीनी चिकित्सकों एवं वैज्ञानिकों ने बताया था कि कैसे सर्वप्रथम निमोनिया के बिल्कुल नये किस्म के चौकाने वाले मामले हुवेई प्रांत की राजधानी वुहान शहर में सामने आये थे। द गार्डियन में लिखते अपने एक महत्वपूर्ण आलेख में रिचर्ड होर्टन ने चीनी चिकित्सकों एवं वैज्ञानिकों की इस बात के लिए प्रशंसा करते हुए कहा है कि चीनी वैाानिकों ने कोविड-19 के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। वह आगे लिखते हैं- मौतों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है, स्वास्थ्यकर्मियों के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा के साजो सामान उपलब्ध कराने की सलाह दी गयी थी और साथ यह हिदायत भी दी गयी थी कि लक्षण का पता चलते ही ज़रा भी देर किये बग़ैर जांच की जानी चाहिए। चीनी वैज्ञानिकों का निष्कर्ष था कि मौतों का दर बहुत आधिक है, इसलिए महामारी फैलाने के सामथ्र्य को देखते हुए इस नये वायरस पर निगरानी रखी जानी चाहिए। अपने आलेख में रिचर्ड होर्टन कहते हैं, ...यह जनवरी की बात है, इसके बावजूद ब्रिटिश सरकार को वायरस की गंभीरता को पहचानने में आठ सप्ताह लग गये, जिसे अब हम कोविड-19 कह रहे हैं। वर्ष 2००3 में एक नयी वायरस बीमारी सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम के ख़तरों को छुपाने के लिए चीनी अधिकारियों की खूब आलोचना हुई थी। साल 2०2० आते-आते चीनी वैज्ञानिकों की नयी पीढ़ी ने अपना सबक सीख लिया था। उनके आस-पास महामारी के तेज़ प्रसार के अत्यधिक दबाव के रहते हुए भी उन्होंने अपनी अनुसंधान को एक विदेशी भाषा में लिखने का समय निकाला और उसे हजारों किलोमीटर दूर एक मेडिकल जर्नल में प्रकाशित करने के लिए भेजा। बेशक उनका यह काम दुनिया के लिए एक जरूरी हिदायत थी। ज़ाहिर है जिस चीन पर अमेरिका ने वैश्विक महामारी फैलाने का आरोप मढ़ा, आज़ वही चीन दुनिया के कई देशों की मदद में पूरी तत्परता से लगा हुआ है। कई यूरोपीय,एशियाई एवं अफ्रिकी देशों में आज़ चीनी चिकित्सकों एवं वैज्ञानिकों की टीमें अपने उपकरणों के साथ कोविड-19 के मरीजों को बचाने के लिए काम कर रही हैं। आज कोविड-19 से लड़ाई के मामले में अमेरिका, इटली, स्पेन, फ्रांस, यूके आदि विकसित देशों की कलई पूरी तरह खुल चुकी है। और भारत भी अपनी मूर्खताओं का परिचय बार-बार दे रहा है। कोरोना आतंक के बीच अमेरिका के प्रसिद्ध इसाई धर्म गुरु टोनी स्पेस के नेतृत्व में पादरियों ने सफतौर पर सामाजिक दूरी बनाये रखने से इंकार करते हुए चर्च में प्रार्थना स्थगित करने से मना कर दिया है। कोविड-19 के बढ़ते संक्रमण एवं लोगों की मृत्यु से जब उन्नत देश बेहद भयाक्रांत हैं, तब चीन वियतनाम एवं क्यूबा हमारे समक्ष एक दृष्टांत पेश कर रहे हैं। ज्ञातव्य है कि कोविड-19 के महामारी से जूझ रहे समाजवादी क्यूबा ने अपने वैश्विक मानवीय आचरण का अति उत्तम परिचय देते हुए अपने चिकित्सकों की टीमों के साथ ही पैरामेडिकल स्टाफ और नर्सों को इटली, मेक्सिको, अंगोला, जमैका, वेनेजुएला सहित 19 देशों में भेज दिया है जहां वे पूरी निष्ठा के संक्रमित मरीजों की मदद में जुटे हुए हैं। आज ब्राजील में भी क्यूबाई मेडिकल टीमें मदद में जुटी हुई हैं। जबकि साम्राज्यवादी अमेरिका, ब्रिटेन, इटली और उसके पिछलग्गू देशों ने एक करोड़ 14 लाख आबादी वाले एक छोटे से देश क्यूबा की आर्थिक नाकेबंदी कर उसे पूरी तरह बर्बाद करने के शातिराना खेल में अब भी लिप्त हैं। पिछले दिनों ब्रिटेन के एक क्रूज़ के यात्री और स्टॉफ के कुछ लोग जब कोविड-19 से संक्रमित पाये गये तो अमेरिका एवं उसके निकटस्थ अन्य सहयोगी देशों ने ब्रिटिश क्रूज़ को अपने बंदरगाह पर ठहरने की इज़ाज़त नहीं दी। ऐसे कठिन वक़्त में तब क्यूबा आगे बढ़कर आपने शत्रुओं की हिफाज़त में अपनी मानवीय संवेदना का परिचय देते हुए ब्रिटिश क्रूज़ को अपने बंदरगाह पर ठहरने की सिर्फ़ इजाज़त ही नहीं दी, बल्कि तमाम संक्रमित यात्रियों की चिकित्सा को सुनिश्चित किया। इटली में कोरोना के बढ़ते संक्रमण और जानमाल की विपुल हानि पर भी जब उसके मित्र राष्ट्रों ने अपनी संजीदगी नहीं दिखायाी तब क्यूबा जो खुद भी कोविड-19 का सामना कर रहा है,आगे बढ़कर मोर्चा संभल लिया। अगर आज क्यूबा के चिकित्सक एवं स्वास्थ्यकर्मी इटली में उपस्थित न होते तो मंुह के बल उसका गिरना तय था। समाजवादी क्यूबा ने सभी तरह के वायरस के टीके खुद ही विकसित किये हैं। क्यूबा के राष्ट्रपति का यह कहना कि साम्राज्यवादी अमेरिका और उसके पिछलग्गू देशों ने विध्वंशक बम बनाये, हथियार बनाये दुनिया की तबाही के औजार विकसित किये जबकि हमने अपने देश के शिक्षा और स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान दिया। हमने योग्य डाक्टर्स और वैज्ञानिक पैदा किये। हमने विज्ञान को जनकल्याण से जोड़ा और अपनी जनता में वैज्ञानिक सोच विकसित की। यही कारण है कि आज़ दुनिया के अनेक देशों में हमारे चिकित्सक और वैज्ञानिक मानवता की सेवा में लगे हुए हैं। आज हमारी बहस इस बात को लेकर जरूर होनी चाहिए कि ईश्वर ने इन्सान को बनाया या इन्सान ने ईश्वर को। इस संकट के समय में प्रकृति की भूमिका तो साफ़तौर पर नज़र आ रही है लेकिन उस ईश्वर की नहीं जिससे हमारी अधिक उम्मीदें बंधी हुई हैं! जबकि विज्ञान अपनी महत भूमिका में हमारे समक्ष तन कर खड़ा है। दुनिया के सभी धर्म अपने मूल में विज्ञान विरोधी हैं। इसे हम नहीं कह रहे हैं बल्कि इस वैश्विक महामारी ने यह स्वत: सिद्ध कर दिया है। दुनिया के सारे धर्म यह मानते हैं कि जीवन और मृत्यु ये दोनों ही ईश्वर के हाथ में है। तबलीगी जमात का मानना है कि कोरोना जैसे वायरस को खुद अल्लाह ने इंसानों को उसके बताये हुए मार्ग से भटक जाने के कारण एक सज़ा के बतौर धरती पर भेजा है। जमात के प्रमुख मौसाना साद की आवाज़ में कई ऐसे वीडियों हैं जिसमें उन्होंने सोशल डिस्टेनसिंग को मुसलमानों को बांटने का षड़यंत्र बताया है और मस्ज़िदों से दूर न जाने की अपील की है। भारत में भी कोरोना-कहर के दौरान दर्जनों धार्मिक वैवाहिक एवं राजनैतिक अनुष्ठानों के आयोजन किये गये जिसमें खुलेआम शारीरिक दूरी बनाये रखने को ले चिकित्सकों एवं वैज्ञानिकों की हिदायतों की धज्जियां उड़ाई गयीं। कर्नाटक के कलबुर्गी जिले में भगवान शिव के मंदिर में भव्य यात्रा का आयोजन किया गया जिसमें लॉक डाउन की धज्जियां उड़ीं। चित्रपुर तालुका के रवूर गांव में भगवान सिद्धलिंगेश्वर मंदिर में भव्य रथ यात्रा का आयोजन कर कथित भक्तों की भीड़ जुटाई गयी। भारत के कथित भगवान भी कोरोना-कहर से आज़ भयाक्रांत हैं। ज़ाहिर है कोरोना-संक्रिमित मरीज़ों की मदद में आज़ कोई भगवान सामने नहीं आ रहा, जबकि विज्ञान अब भी अपनी महती भूमिका के साथ हमारे पास खड़ा है। ज्ञान-विज्ञान के दुश्मनों से आप सदैव सावधान रहें!


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